Wednesday, April 17, 2019

गोण्डा : करनैलगंज के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में स्थाई समाधान की राह निहार रहे बाढ़ पीड़ित ग्रामीण// प्रवीण श्रीवास्तव, ◆ सरकार बदलती रहीं किन्तु नहीं बदले एल्गिन चरसड़ी बांध का पुरसाहाल हालात,

गोण्डा : करनैलगंज के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में स्थाई समाधान की राह निहार रहे बाढ़ पीड़ित ग्रामीण// प्रवीण श्रीवास्तव,

◆ सरकार बदलती रहीं किन्तु नहीं बदले एल्गिन चरसड़ी बांध का पुरसाहाल हालात,

गोण्डा। करनैलगंज क्षेत्र में बाढ़ पीड़ितों एवं एल्गिन चरसड़ी बांध का पुरसाहाल हालात नहीं बदल सका है। अब भी बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र में बाढ़ के वक्त प्रभावित हुए कई बेघर परिवार एक अदद घर के लिये इधर उधर दर दर भटक रहे हैं। इन बाढ़ पीड़ित परिवारों को एक अदद छत मयस्सर नही है। औऱ बांध पर फूस का छप्पर रखकर रहने को मजबूर हैं। करनैलगंज क्षेत्र के तहत फैजाबाद व बारांबंकी के सीमा के इस बाढ़ प्रभावित इलाकों में कई पीड़ितों को रहने के लिये आवास नहीं मिल सका है। ग्रामीणों ने बताया कि वर्ष 2009 में एल्गिन चरसड़ी बांध टूटने के बाद कई बार बांध कटा। भिखारीपुर सकरौर तटबन्ध के स्पर नम्बर एक पर दर्जनों बाढ़ पीड़ित छप्पर रखकर गुजारा कर रहे हैं।

जिससे अपना वजूद खो चुके इन गांवों को अब कछार की रेत में भी तलाश पाना मुश्किल है। काफी संख्या में ये परिवार तटबंध पर फूस का घर बनाकर रहने को विवश हैं। तो वहीं कुछ बाढ़ पीड़ितों ने गोण्डा जिले की कैसरगंज लोकसभा के इलाकों में पड़ने वाले तटबंध के समीप के गांवों व अन्य स्थानों पर जीवन गुजार रहे है। जिन्हें जहां जगह मिली वह वहीं जीवन व्यतीत कर रहा है।

बाढ़ आपदा के दौरान अपने गांव से अलग होकर बंधे पर रह रहे मांझारायपुर, नैपुरा, परसावल के बाढ़ पीड़ित बताते हैं कि चुनाव आते ही उनके लिए सभी दल के नेता हमदर्द बन जाते हैं। अपने पक्ष में वोट की अपील करते है। समाधान का आश्वासन देते हैं। चुनाव जीतने के बाद बाढ़ पीड़ितों के दर्द जानने कोई नहीं आता है। फूस के मकानों में रहना इनकी जिंदगी बन गई है।

पग-पग पर दुश्वारियों को झेलने वाले बाढ़ पीड़ितों को चुनाव दर चुनाव सिर्फ आश्वासन मिलते रहते हैं। नकहरा गांव के लोग बताते हैं कि बाढ़ पीड़ितों को सुरक्षित स्थान पर बसाने की बात जनप्रतिनिधियों के द्वारा केवल वोट हासिल करने के लिए की जाती रही है। बाढ़ पीड़ित कई परिवार अब भी अस्थाई ठिकानों पर रह कर जीवन गुजारने को मजबूर हैं।

बाढ़ पीड़ितों को मुक्कमल जगह देकर घर बसाने की किसी को फिक्र नहीं है। घर उजड़ना और दर दर भटककर अस्थायी रहना इन बाढ़ पीड़ितों की फितरत में शामिल हो गया है। जिससे परसावल, नकहरा, वेहटा गांव के विनोद कुमार यादव पाटन, ललित राम यादव राम, संत कुमार, कुमारे, सूरज कुमार, सत्रोहन, संतु आदि ग्रामीण बाढ़ पीड़ितों के स्थायी समाधान की राह निहार रहे हैं।

हर तरफ मचे चुनावी शोर में घाघरा की तलहटी में बसने वालों का उत्साह ठंडा पड़ा हुआ है। कारण है कि सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक स्तर को मजबूत करने के लिए इन्हें सहारा नहीं मिल सका। कुछ ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव में भी कोई भी नेता बाढ़ पीड़ितों का दुख दर्द पूछने नहीं आया है। ग्रामीणों ने बताया कि चुनाव की खबर रेडियो पर सुनते हैं। किंतु यहां तो कुछ नहीं दिखाई दे रहा।

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