Monday, April 22, 2019

गोण्डा : पसका सूकरखेत में श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र बना वराह भगवान मन्दिर, ■ भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष नामक दैत्य के चंगुल से पृथ्वी को कराया मुक्ति, ■ सूकरखेत में अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा जत्था के साधु संत करते हैं पड़ाव, ■ पृथ्वी का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया, ◆◆◆ राजन कुशवाहा, गोण्डा,

गोण्डा : पसका सूकरखेत में श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र बना वराह भगवान मन्दिर,

■ भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष नामक दैत्य के चंगुल से पृथ्वी को कराया मुक्ति,

■ सूकरखेत में अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा जत्था के साधु संत करते हैं पड़ाव,

■ पृथ्वी का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया,

◆◆◆ राजन कुशवाहा, गोण्डा,

दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्थन प्रदर्शित करने के लिए आयोजित विश्व पृथ्वी दिवस की स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप की थी। अब इसे 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष 22 अप्रैल को मनाया जाता है।

गोण्डा जिले में सूकरखेत पसका के सरयू घाघरा नदी के त्रिमुहानी संगम तट स्थित अति प्राचीनतम भगवान वाराह मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं सैलानियों को आकर्षण का केंद्र है। धर्म व शास्त्रों में वाराह रूप का विशेष उल्लेख है। यह वाराह छत्र मन्दिर गोण्डा जनपद का गौरवशाली कीर्तिमानों में अद्वितीय है। यहां सूकरखेत स्थित घाघरा सरयू की पावन धारा संगम तट के समीप बना प्राचीनतम वाराह छत्र मंदिर सनातन धर्म की आस्था व श्रद्धा की अनुपम छटा विखेर रहा है। प्रतिवर्ष पौष पूर्णिमा को सम्पूर्ण माह कल्पवासियों समेत दूरदराज अंचलों व गैर जनपदों से आये मेलार्थियों का विशाल मेल रहता है।

सोमवार को पृथ्वी दिवस के अवसर पर परसपुर क्षेत्र के कवि व साहित्यकार डॉ सन्त शरण त्रिपाठी सन्त ने वाराह पुराण व वाराह अवतरण के संदर्भित वर्णन किया। उन्होंने बताया कि शास्त्र एवं पुराण साक्षी हैं कि भगवान सदा ही अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। इसीलिए पृथ्वी का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को वराह रूप लेकर उन्होंने पृथ्वी को हिरण्याक्ष से मुक्त करवाया था। ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की तो उसका विस्तार करने के लिए मनु और शतरूपा नामक पति-पत्नी बनाए। तथा उन्होंने पुत्र स्वायम्भुव मनु को अपनी पत्नी के साथ मिलकर गुणवती संतान उत्पन्न करके धर्म पूर्वक पृथ्वी का पालन करने का आदेश दे दिया।

मनु जी ने तब हाथ जोड़कर पिता की आज्ञा का पालन करना स्वीकार किया। तथा प्रार्थना किया कि पृथ्वी के बिना वह अपनी भावी प्रजा का पालन कैसे कर सकेंगे। क्योंकि सारी पृथ्वी जल में डूबी हुई है। ब्रह्मा जी तब पुत्र स्वायम्भुव मनु की बात सुनकर एक गहरी सोच में पड़ गए। क्योंकि वह जानते थे, कि जब वह लोक रचना में व्यस्त थे, तो पृथ्वी जल में डूब गई थी। अब वह रसातल तक चली गई है। पृथ्वी को रसातल से लाने के विचार में लीन श्री ब्रह्मा जी ने सर्वशक्तिमान श्री हरि जी का स्मरण किया। तभी उन्हें छींक आई तथा उनके नासाछिद्र से अचानक अंगूठे के आकार का एक वराह शिशु निकला। तथा आकाश में खड़ा हो गया।

ब्रह्मा जी के देखते ही देखते वह बढऩे लगा तथा क्षण भर में वह हाथी के आकार का हो गया। उस वराह मूर्त को देखकर मरीचि आदि मुनिजन, सनकादि और स्वायम्भुव मनु सहित ब्रह्मा जी भी विचार करने लगे कि नाक से निकला अंगूठे के पोरुए के बराबर दिखने वाला यह प्राणी कैसे एकदम से भारी शिला के समान हो गया है। निश्चय ही यह यज्ञमूर्त भगवान है। जो सभी के मन को मोहित कर रहे हैं। सभी इस बारे में विचार कर ही रहे थे, कि भगवान यज्ञपुरुष पर्वताकार होकर गरजने लगे। उसकी गर्जना से सभी दिशाएं प्रतिध्वनित हो उठीं। तथाब्रह्मा जी और श्रेष्ठ ब्राह्मण हॢषत हो गए। माया-मय वराह भगवान की घुरघुराहट एवं गडग़ड़ाहट को सुनकर जनलोक, तपलोक और सत्यलोक निवासी एवं मुनिगण तीनों वेदों के मंत्रों से भगवान की स्तुति करने लगे।

उस वराह ने एकबार फिर से गजराज की लीला करते हुए जल में प्रवेश किया। वह जल में डूबी हुई पृथ्वी को अपनी दाढ़ों पर लेकर रसातल से ऊपर आ गए। सबकी रक्षा करने वाले भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर जल से पृथ्वी को बाहर निकाला। और अपने खुरों से जल को स्तम्भित करके उस पर पृथ्वी को स्थापित भी किया। तब सभी देवताओं ने भगवान की अनेकों रूपों से स्तुति की। भगवान विष्णु ने संसार के विस्तार के लिए वराह रूप में अवतार लिया।

कवि जयदीप सिंह सरस् ने कहा कि प्रजापति कश्यप के लड़के हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दोनों भाइयों ने कठिन तपस्या करके ब्रह्म जी से अलग-अलग वरदान पाए। हिरण्यकश्यप ने अनेक शर्तें रखकर ब्रह्मा जी से न मरने का वरदान प्राप्त किया। उसे मारने के लिए भगवान ने नृसिंह अवतार लिया। तथा उसे उसके दिए हुए वचन के अनुसार ही मारा, दूसरे भाई हिरण्याक्ष को मारने के लिए भगवान ने वराह अवतार लिया। हिरण्याक्ष ने जब दिग्विजय की, तो उसने सारी पृथ्वी को जीत लिया। वह पृथ्वी को उठाकर समुद्र में ले गया था। पृथ्वी को दैत्य से मुक्ति दिलवाने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया। यह वराह अवतार स्थल सूकरखेत के नाम से जाना जाता है। जनपद गोण्डा के पसका सूकरखेत स्थित प्राचीनतम वराह भगवान मन्दिर है। जहाँ प्रतिवर्ष पौष पूर्णिमा को सरयू संगम तट पर कल्पवासी व श्रद्धालुओं का विशाल मेला लगता है।

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