Sunday, March 3, 2019

गोण्डा : खरगूपुर के पृथ्वीनाथ मंदिर में शिवरात्रि पर उमड़ेगी श्रद्धालुओं की काफी भीड़// प्रदीप पाण्डेय,


गोण्डा। (प्रदीप पाण्डेय)। खरगूपुर स्थित पृथ्वीनाथ मंदिर में शिवरात्रि पर्व पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ेगी।सोमवार को महाशिवरात्रि पर्व के पावन अवसर पर खरगूपुर के पौराणिक बाबा पृथ्वीनाथ शिव मंदिर के विशालकाय शिवलिंग पर काफी संख्या में श्रद्धालु जलाभिषेक करेंगे। जलाभिषेक के लिए महिला- पुरुष श्रद्धालुओं की अलग- अलग लाइनों की व्यवस्था की गयी है। महाशिवरात्रि पर युवतियां व पुरुष व्रत रखकर मनवांछित फल की कामना करेंगे। यहां मन्दिर का पट खुलते ही लोग लाइनों में लग जायेंगे बारी बारी से जलाभिषेक करेंगे।

खरगूपुर नगर पंचायत से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भीम द्वारा स्थापित पौराणिक पृथ्वीनाथ मंदिर है। महाशिवरात्रि का विशेष महत्त्व है क्योंकि इसी दिन भोलेनाथ व पार्वती जी का विवाह हुआ था। मान्यता है कि इस भूभाग में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने अलग- अलग स्थानों पर भव्य शिवलिंगों की स्थापना की थी।

इनमें सबसे प्रमुख पृथ्वीनाथ में भीम, पचरननाथ में अर्जुन तथा निकटवर्ती विशेश्वरगंज थाना के इमरती गांव में एक ही गर्भगृह में नकुल एवं सहदेव ने शिवलिंगों की स्थापना की थी। उक्त शिवलिंग प्राचीनकाल की विशालकाय लाट गुप्त काल की बताई जाती है। इन सभी में पृथ्वीनाथ स्थित मंदिर में स्थापित 5 फुट ऊंचा शिवलिंग काले कसौटे दुर्लभ पत्थरों से बना हुआ है। कालान्तर में यह भूभाग जंगलों से घिरा हुआ था। कहा जाता है की अज्ञातवास के दौरान पांचो पांडव अपनी माता कुंती के साथ यहां रुके थे। यहां पर एक बूढ़ी व गरीब औरत अपने एकलौते बेटे के साथ रहती थी।इसी जंगल में एक बंकासुर नामक राक्षस रहता था, जिसे खाने के लिए एक बैलगाड़ी अनाज, एक आदमी व एक भैसा प्रतिदिन चाहिए था।

यहां के राजा, ग्रामीण और राक्षस के बीच एक निर्णय हुआ की गांव से आदमी जायेगा तथा अनाज व भैंसे की व्यवस्था स्वयं राजा करेंगे। यह शिलशिला ऐसे चलता रहा। एक इस बूढ़ी औरत के बेटे का नम्बर आ गया।तब माता कुंती ने भीम को उसके जगह पर भेज दिया। जहां बन्कासुर और भीम के बीच घमासान युद्ध हुआ और अंत में बन्कासुर मारा गया। बन्कासुर पूर्व जन्म में ब्राह्मण था, इसलिए भीम को ब्रह्म हत्या लग गया। पुरोहितों ने बताया कि यदि शिवलिंग की पूजा की तो ब्रह्महत्या से छुटकारा मिल सकता है। उसी समय भीम ने पृथ्वीनाथ मन्दिर में 7 खण्डों के शिवलिंग की स्थापना कर पूजा- अर्चना की। धीरे-धीरे यह खंडहर में परिवर्तित हो गया।

टीले पर स्थित इस मंदिर के बारे में जानकारों का कहना है कि मुगल सम्राट के कार्यकाल में उनके किसी सेनापति ने यहां पूजा अर्चना की। और मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। भीम द्वारा स्थापित यह शिवलिंग धीरे- धीरे जमीन में समा गया। कालांतर में खरगूपुर के राजा मानसिंह की अनुमति से यहां के निवासी पृथ्वीनाथ सिंह ने मकान निर्माण कराने के लिए खुदाई शुरू करा दी। उसी रात में पृथ्वीसिंह को स्वप्न में पता चला कि नीचे सात खंडों का शिवलिंग दबा है। उन्हें एक खंड तक शिवलिंग खोजने का निर्देश हुआ।

इसके बाद शिवलिंग खुदवाकर पूजा- अर्चन शुरू करा दिया और उनके नाम पर ही पृथ्वीनाथ मंदिर पड़ गया। लगभग 4 दशक पूर्व पुरातत्व विभाग की जांच में पता चला कि एशिया का सबसे बड़ा यह शिवलिंग है। जो 5000 वर्ष पूर्व महाभारत काल का है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से जलाभिषेक तथा दर्शन पूजन करने से लोगों की मनवांछित फल प्राप्त होता है। मन्दिर के प्रशासक स्वयं जिलाधिकारी हैं। यहां महा शिवरात्रि के अवसर पर एक विशाल मेले का आयोजन होता है। प्रशासन द्वारा मेले की तैयारियां पूरी कर ली गयी है।

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