
गोण्डा। जिले के लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय में आयोजित "भारत मे माओवादी समस्या" विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसका उद्घाटन बतौर मुख्य अतिथि सिंघानिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ अशोक कुमार सिंह ने किया। इसके पश्चात अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि वर्तमान समय मे शक्ति बंदूक की नली से नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था से निकलती है।
उन्होंने कहा कि सतत और समावेशी विकास के साथ-साथ समरसता आज राष्ट्रीय सुरक्षा की पहली जरूरत है। माओवादी समस्या सामाजिक आर्थिक विषमता की देन है। 70% संसाधनों पर 10% लोगों का कब्जा है। डॉ सिंह ने कहा कि हाशिए के समाज को जब तक विकास का स्वाद चखने के लिए नहीं मिलेगा, तब तक उनका ब्रेनवाश कर के आतंकवादी गतिविधियों पर कारगर रोक लगा पाना संभव नहीं होगा।
अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद प्रोफेसर सूर्यपाल सिंह ने विस्तार से माओत्से तुंग की और उसकी विचारधारा पर आधारित माओवाद के कारणों को रेखांकित किया। उन्होंने अपने सारगर्भित उद्बोधन में समानता और स्वतंत्रता के अंतर संबंधों की पड़ताल करते हुए माओवाद की अवधारणा को स्पष्ट किया। प्रोफ़ेसर सिंह ने कहा कि माओवाद समानता पर जोर देता है। परंतु आजादी को सीमित करता है। आंध्र प्रदेश से नेपाल तक कथित लाल गलियारा की माओवादी व्याप्ति के मूल में गरीबी, बेरोजगारी और सामाजिक अन्याय है। इसके साथ ही उन्होंने माओवाद नक्सलवाद की रूढ़िबद्ध सीमाओं का उल्लेख किया।
विषय प्रवर्तन करते हुए राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजक सचिव डॉ ऋषिकेश सिंह माओत्से तुंग को मानवतावादी और उग्र राष्ट्रवादी बताते हुए कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में माओवाद नक्सलवाद जैसे हिंसा पर आधारित आतंकी संगठनों का समर्थन कदापि नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि शांति, सहिष्णुता और ढेर सारी सहूलियतों वाले भारत में हिंसक क्रांति की बात कोई मूर्ख या नासमझ ही कर सकता है।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि डॉ आर एस पांडे ने रक्षा एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के फर्क को समझाते हुए भारत की सैन्य शक्ति को अत्यंत सुदृढ कहा। अपने वक्तव्य ने उन्होंने कहा कि माओवाद-नक्सलवाद, युद्ध का एक रूप है। विदेशी ताकतें जब सीधा सामना करने में सक्षम नहीं होती तब अपना लक्ष्य, राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करने के लिए ऐसे दस्ते तैयार करवाती हैं। जो गुरिल्ला वार कर सकें। उन्होंने कहा की युद्ध एक आवश्यक बुराई है। सरकार के साथ जनता की जागरूकता आवश्यक है। यह ध्यान रहे कि विचार मरते नहीं है।
राजनीतिशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ अतुल कुमार सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि नक्सली समस्या हो या माओवाद हो, आर्थिक असमानता, निर्धनता गरीबी, बेरोजगारी के कारण फलते फूलते हैं। वर्ष 1967 में बंगाल के एक गांव से नक्सलबाड़ी आंदोलन किस तरह नक्सल आतंकवाद का पर्याय बन जाता है। इसे बखूबी समझा जा सकता है। छत्तीसगढ़ झारखंड समेत देश के कई हिस्सों में चल रही आतंकी गतिविधियों का मुकाबला दमन के साथ ही, विकास कार्यक्रमों को बढ़ाकर किया जा रहा है।
प्राचार्य हरि प्रकाश श्रीवास्तव ने माओवाद की समस्या को समाजार्थिक कोण से देखने की बात कही। उन्होंने कहा कि हिंसा कैसी भी हो स्वीकार्य नहीं हो सकती। प्राचार्य डॉ श्रीवास्तव ने अतिथियों, विद्वानों एवं शोध छात्रों का स्वागत किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन रक्षा अध्ययन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर आरबीएस बघेल ने किया।
इस अवसर पर पूर्व प्राचार्य डॉ डीके गुप्त, डॉ वंदना सारश्वत, डॉ केएन पांडेय, डॉ शैलेन्द्र नाथ मिश्र, डॉ बीपी सिंह, डॉ दमयंती तिवारी, डॉ अमन चंद्रा, डॉ विजय अग्रवाल, डॉ मंशाराम वर्मा, डॉ श्याम बहादुर सिंह, डॉ बजरंग पाठक, अमरजीत वर्मा, राजकुमार माथुर, शरद कुमार पाठक, अभिमन्यु चौबे, नंदकुमार शुक्ल आदि शामिल रहे।

No comments:
Post a Comment