Monday, November 19, 2018

गोण्डा : जिले में इस त्यौहार को श्रापित व अभद्र शब्द सुनने के लिये करते हैं लोग ऐसा दुष्टता काम// राजन कुशवाहा,

गोण्डा।(राजन कुशवाहा)। परसपुर कस्बे में प्रबोधिनी एकादशी सोमवार की सुबह से ही गन्ने की कई दुकानें सज गयीं। जिसे खरीददारी को पुरुष महिलाओं की काफी भीड़ जुटी। काफी ऊंचा व लम्बा पत्तीदार हरे भरे गन्ने की खरीद फरोख्त को लेकर बाजारों में चहल पहल रहा है। शाम को सूरज ढलते ही गांव के बच्चों ने बाग खेत खलिहानों में पहुँचकर हड़ा हड़वाई जलाई। बुजुर्ग ग्रामीणों का कहना है कि इस दीठवन त्यौहार की परम्परा काफी वर्षों से है। हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल एकादशी को मनाया जाने वाला डीठवन का यह पर्व हर घरों में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है।

अवध क्षेत्र के परिधि में गोण्डा समेत सम्पूर्ण देवीपाटन मण्डल के डीठवन पर्व की परम्परा का एक अलग व अनोखा अंदाज है। कहने सुनने में तो यह अटपटा जरूर लगे, किंतु यह पर्व गोण्डा वासियों में एक मिसाल कायम करता है।

◆ गोण्डा जिले में दीठवन का ऐसा त्योहार हड़ा हड़वाई के अलग अलग कई कहावतें व पौराणिक धार्मिक मान्यता प्रचलन में है। इस दीठवन पर्व के दिन से जाड़े ऋतु का प्रारम्भ माना जाता है। इस त्यौहार की शाम को गांव के बच्चे सेल्हा, पेटुवा की सूखी लकड़ी पर कपड़े का चिथड़ा बाँधते हैं। जिसे लुका कहा जाता है। और बच्चे गांव के करीब किसी बाग या खेत के मैदानी हिस्से में पहुंचकर इस लुका में आग लगा देते हैं। फिर इसकी रौनक कुछ अजीबो गरीब दृश्य में तब्दील हो जाता है। सभी बच्चे जलते हुए लूका को एक साथ हाथों में घुमाते हुए दूर दूर तक दौड़ लगाते है।

और कुछ यूं ही अवधी या देहाती गोण्डहा भाषा मे जोर जोर चिल्लाते हुए कहते हैं कि हड़ा हड़वाई बहय पुरवाई, राजाक बगियम होय लड़ाई ...। धीरे धीरे लूका बुझने लगता है। और बच्चे घर वापस हो जाते हैं। वहीं इसी दीठवन पर्व की भोर के पहले अंधेरे में ही महिलाएं घर मे इस्तेमाल किये जाने वाले पछोरन पात्र या सूप को हाथ मे लेकर पीटती हैं। गोण्डा जिले समेत आसपास के इलाके में ऐसा प्रचलन है कि घरेलू महिलाएं एक हाथ मे सूप, तो दूसरे हाथ मे गन्ने का अगला हिस्सा वाला डंठल लेकर निकलती हैं।

जिसे गन्ने का आगौरा कहा जाता है। इसी अगौरा से महिलाएं सूप को पीटती हुई घर आँगन समेत सभी कमरों में जाती हैं। और उस समय सूप बजाते हुए यह आवाज लगाती हैं कि ईश्वर आवेएँ दरिद्र जाएं, कहती हुई गांव के चौडगरा पर सूप को बजाकर अपने घर के घूर पर फेंक देती हैं। इसी समय अंधेरे का फायदा उठाकर कुछ लोग सूप छिनने का काम करते हैं। जिससे छिनने वालों को फायदे होने की कहावत प्रचलित है। बताया जा रहा है कि जिस महिला का सूप अचानक छीन जाता है। छिनने वालों को क्रोधित होकर श्रापित शब्दों में वह महिला बदुवा करती है। जिसका असर उलटा होकर सूप छीनने वाले को कल्याणकारी होता है। वहीं यह भी प्रचलन है कि छीने गए सूप को आग में जलाकर उसकी आंच से शरीर को सेकने से कई असाध्य शारीरिक रोगों से छुटकारा मिल जाता है। ऐसा मानना है कि मनुष्य जीवन के दुःख दर्द क्लेश का स्वतः निवारण हो जाता है।

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