■ प्रबोधिनी एकादशी को खेत में गन्ने का पूजन व गन्ने के रस का सेवन प्रारंभ,
गोण्डा। कार्तिक माह के 11 वें चंद्र दिवस एकादशी तिथि को प्रबोधिनी एकादशी मनाया जाता है। देव उथानी एकादशी और देवतुथन एकादशी के रूप में भी जाना जाता है। इस बार 19 नवम्बर को हरि प्रबोधनी एकादशी व्रत, हरि विष्णु का पूजन व उन्हें जगाने तथा शालीग्राम के साथ तुलसी विवाहोत्सव होगा। सोमवार को दिन में 11: 54 बजे के बाद खेत मे गन्ने का पूजन, गन्ने का रस सेवन होना प्रारंभ होगा।
ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु इस दिन चार महीनों की नींद से जागते हैं। भगवान विष्णु देवशयानी एकादशी पर सोने का आरम्भ करते है। प्रबोधिनी एकदशी का दिन चतुर्मास के अंत का प्रतीक है। भगवान विष्णु ने इस दिन देवी तुलसी से विवाह किया था। इस वर्ष प्रबोधिनी एकादशी व्रत 19 नवंबर को मनाया जायेगा।
पंडित त्यागानन्द पाण्डेय ने बताया कि पद्म पुराण में एकादशी व्रत से संबंधित सभी नियमों और कथा आदि का वर्णन है। पद्म पुराण के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर पवित्र होना चाहिए। इसके बाद फल, फूल, कपूर, कुमकुम, तुलसी आदि से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
प्रबोधिनी एकादशी व्रत वाले दिन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के विविध मंत्र पढ़े जाते हैं। इस दिन नैवेद्य के रूप में विष्णु जी को ईख, अनार, केला, सिंघाड़ा आदि अर्पित किया जाता है। इस दिन उपवास करके रात में सोते हुए भगवान हरि विष्णु जी को गीत आदि गाकर जगाना चाहिए। प्रबोधिनी एकदशी के दिन, भक्त भगवान विष्णु की भक्ति के साथ पूजा करते हैं। और पूरे दिन उनके नाम के मंत्र का जप करते हैं।
इसके बाद दूसरे दिन सवेरे स्नान आदि नित्यकर्मों के बाद श्री हरि की पूजा होती है। ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा देकर विदा करके भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए। जो लोग पूरे दिन व्रत नहीं रख सकते हैं। वे फल और दूध खाकर और पूरे दिन चावल और अन्य अनाज न खाकर आंशिक व्रत रख सकते है।
प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी के पत्तों का विशेष महत्व है। कई लोग इस दिन तुलसी विवाह भी करते हैं। जिसमें विष्णु जी के स्वरूप शालिग्राम जी और तुलसी जी का विवाह मनाया जाता है।
मान्यता है कि प्रबोधिनी एकादशी व्रत करने से अश्वमेध तथा सौ यज्ञों का फल मिलता है। इस पुण्य व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है तथा वह स्वर्ग प्राप्त करता है। प्रबोधिनी एकादशी के दिन जप, तप, गंगा स्नान, दान, होम आदि करने से अक्षय फल प्राप्त होता है।
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