गोण्डा। तुला के पवित्र माह में आगामी शनिवार को आवला नवमी अर्थात अक्षय नवमी पूजन के साथ समाप्त होगा। मान्यता है कि तुला माह में आवंले के बृक्ष के पूजन से बहुत लाभ होता है। प्राचीन परम्परा के अनुसार अभी भी ग्रामो के लोग आवला बृक्ष के नीचे तुला माह में भोजन, खीर आदि बनाकर परिवार सहित खाते है और इसके बृक्ष का पूजन करते है। तुला माह के अंत में आने वाले आवला नवमी को विशेष पूजन का प्राविधान है। इस बार पवित्र तुला माह की शुरुवात 18 अक्टूबर को हुआ है। 17 नवम्बर को अक्षय नवमी पूजन के बाद यह पवित्र माह समाप्त माना जावेगा।
इटियाथोक ब्लाक क्षेत्र के अनेक ग्रामो में तुला के पावन माह पर आवला का पूजन हुवा। क्षेत्र के पंडित राजेश शुक्ल उर्फ़ लवकुश ने जानकारी देते हुए कहा की कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में अक्षय नवमी अर्थात आंवला नवमी श्रद्धा भाव के साथ परंपरागत ढंग से मनाई जाती है। तुला में गांव की महिलाओं ने आंवला वृक्ष की और भगवान विष्णु व शिव की पूजा किया।
आंवले के वृक्ष के नीचे ही भोजन बनाकर स्वयं भी खाया और दूसरों को भी खिलाया। साथ ही दान पुण्य भी किया गया। कहा की इसको लेकर कई ग्रामो में महिलाओं ने आंवले के वृक्ष के नीचे साफ-सफाई किया। बताया कि कार्तिक मास की अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से तथा उसके नीचे भोजन बनाकर ग्रहण करने से और साथ ही दूसरों को ग्रहण कराने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
पंडित जी ने कहा की दीपावली के बाद यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी कहते हैं। कहा की कई जगह 20 नवंबर, शुक्रवार को आंवला नवमी का त्योहार और तुलसी विबाह मनाया जाएगा। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। इस रोज रात्रि भोजन आंवला वृक्ष के समीप ही करना चाहिए।
इससे अखंड सौभाग्य, आरोग्य व सुख की प्राप्ति होती है। बताया की तुला माह में प्रातः स्नानादि कर आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन करना चाहिए। पूजन के बाद आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध का अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बांधना चाहिए। कपूर बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। इसके बाद पेड़ के नीचे ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देना चाहिए।
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