Wednesday, November 14, 2018

गोण्डा :  इटियाथोक क्षेत्र में बाल दिवस पर आयोजित हुए विविध कार्यक्रम// प्रदीप पाण्डेय,

गोण्डा। इटियाथोक के कई सरकारी और निजी विद्द्यालयो में बुधवार को धूमपूर्वक बाल दिवस मनाया गया। इस दौरान निजी विद्द्यालयो में केक काटकर चाचा नेहरू का जन्मदिन धूमपूर्वक मनाया गया। मिठाइयां बांटी गई। बाल दिवस पर कई जगह अनेक कार्यक्रम भी आयोजित हुए और चाचा नेहरू के बारे में बच्चों को जानकारियां दी गई। क्षेत्र अंतर्गत पूर्व माध्यमिक विद्द्यालय इटियाथोक, प्रा0वि0 विशुनपुर संगम, पूर्व माध्यमिक विद्द्यालय जनकौरा आदि में कार्यक्रम आयोजित हुए।

इटियाथोक कसबे में मौजूद सरस्वती स्कूल में अनेक आयोजन हुए और केक काटकर बच्चों को मिठाइयां भी बांटी गई।यहाँ पर एक कार्यक्रम द्वारा बच्चों को चाचा नेहरू के बारे में जानकारियां प्रदान की गई। इस अवसर पर उक्त स्कूल के प्रबंधक सुरेश नारायण पाण्डेय ने बच्चों को बताया की देश के इतिहास में 14 नवंबर की तारीख स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन के तौर पर दर्ज है। उनके निधन के बाद इस दिन को बाल दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। इलाहाबाद में 14 नवंबर 1889 को जन्मे जवाहर लाल नेहरू को बच्चों से खासा लगाव था और बच्चे उन्हें चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे। चाचा नेहरू बच्चों को देश का भविष्य बताते थे। वो कहते थे कि ये जरूरी है कि बच्चों को प्यार दिया जाए और उनकी देखभल की जाए ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। भारत में 1964 से पहले तक बाल दिवस 20 नवंबर को मनाया जाता था, लेकिन जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद उनके जन्मदिन यानी 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया, 27 मई 1964 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद सर्वसहमति से ये फैसला लिया गया कि जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन को बाल दिवस के तौर पर माना जाए। कहा की बाल दिवस के दिन बच्चों को उपहार, मिठाइयां दिए जाते हैं और स्कूलों में तरह- तरह के कार्यक्रम आयोजिक कराए जाते हैं।

प्राथमिक विद्द्यालय भीखमपुरवा के प्रधानाध्यापक मनोज मिश्र ने बच्चों को इस अवसर पर बताया की भारत में प्रत्येक वर्ष 14 नवंबर को पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। जो सपने चाचा नेहरू ने बच्चों के खुशहाल जीवन को लेकर देखें थे, वे आज कई धूमिल होते नजर आ रहे हैं। आज भी देश के करोड़ों बच्चे दो जून की रोटी के लिए मोहताज हैं। जिस उम्र में बच्चों के हाथों में स्कूल जाने के लिए किताबों से भरा बस्ता होना चाहिए, उस उम्र में वे मजदूरी करने को मजबूर हैं। ये विषम हालात ही हैं जो इन बच्चों को उम्र से पहले बड़ा बना रहे हैं। कहा जाता है कि बच्चे किसी देश का वर्तमान ही नहीं, बल्कि भविष्य भी होते हैं। जिस देश के बच्चे वर्तमान में जितने महफूज व सुविधा संपन्न होंगे, जाहिर है कि उस देश का भविष्य भी उतना ही उज्ज्वल होगा। इन्होंने बच्चों को पढ़ाई लिखाई पर विशेष ध्यान देने को कहा।

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