■ 22 अक्टूबर- जनकवि अदम गोंडवी जयंती पर विशेष,
● (अंकिता सोनी, गोण्डा)
गोण्डा। 'भूख के एहसास को शेरो सुख़न तक ले चलो, या अदब की मुफलिसी को अंजुमन तक ले चलो' इन पंक्तियों के जरिये आम आदमी का दर्द बयां करती यह पक्तियां रामनाथ सिंह अदम गोंडवी की हैं। यह वह नाम है जो आम आदमी की आवाज़ के रूप में दुष्यंत कुमार, नागार्जुन व धूमिल की परंपरा के कवियों में शुमार है। अदम की रचना में शोषित, वंचित व उत्पीड़ित व्यक्तियों की व्यथा के साथ ही सामाजिक रहनुमाओं का कच्चा चिटठा है। आजादी के 30 साल बाद देश के शासकों से अदम ने सवाल पूछा कि- 'सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है, दिल पे रखके हाथ कहिए देश क्या आजाद है'।
◆ अदम जनता का आह्वान करते हैं कि- 'छेड़िए इक जंग मिल जुलकर गरीबी के खिलाफ, दोस्त और मजहबी नग्मात को मत छेड़िए।' अदम गोंडवी लिखते हैं कि 'जब सियासत हो गई है पूंजीपतियों की रखैल, आम जनता को बगावत का खुला अधिकार है'। उन्होंने जनसमस्याओं को उठाया है। अदम की शायरी का राजनीति से गहरा वास्ता है। वह राजनीति और राजनेताओं को आईना दिखाते हुए कहते हैं कि 'काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में, उतरा है रामराज्य विधायक निवास में'। अदम की तीन रचनाएं गर्म रोटी की महक, समय से मुठभेड़, धरती की सतह पर, इन सभी की वैचारिक भूमि एक ही है। अदम उन कवियों में थे, जो शायरी को एक मकसद की तरह लेते थे। जो कुछ समाज में हो रहा है, वो उन्हें अपनी रचनाओं के माध्यम से उठाते थे।
◆ 'चमारों की गली' रचना में- अदम गोंडवी ने अपनी रचनाओं में समाज का एक ऐसा सच सामने लाने की कोशिश किया, जिसने उन्हें एक मुकाम दे दिया। अदम गोंडवी की रचनाओं की भाषा जनता के बीच की है। सहज है। वह जनता के बीच से जनता की बात करते हैं। वह खड़ी बोली के लोक कवि हैं। कवि सुरेश मोकलपुरी कहते हैं कि दुष्यंत और अदम से पहले गजल सिर्फ प्रेमी प्रेमिका के मिलन-बिछुड़न की कहानी मात्र हुआ करती थी, लेकिन अदम गोंडवी ने हिन्दी गजल को जनता की आवाज बनाया। उसे एक नई आवाज, नई पहचान एवं नई परिभाषा दी। अदम गोंडवी ने भूख, गरीबी, लाचारी, सामंतों के जुल्म ज्यादती की बात कहकर मजलूमों की आवाज को शब्दों में ढालकर गजल की रचना की। उन्हें कभी नही भुलाया जा सकता है।
◆ अदम की रचनाओं में यथार्थ है- अदम ने जो जिया, देखा, महसूस किया, उसे बेहिचक अपनी रचना में उतार दिया। एक नजर अदम गोंडवी पर: जिले के आटा गांव में 22 अक्टूबर 1947 को एक साधारण किसान परिवार में रामनाथ सिंह का जन्म हुआ। पारिवारिक पृष्ठभूमि कमजोर होने के कारण केवल प्राइमरी तक की शिक्षा पाने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। बचपन से ही कवितापाठ की ओर उनका झुकाव था। वह आसपास के मुशायरों व कवि सम्मेलनों में जाने लगे। उन्होंने तीन रचनाएं लिखीं। वर्ष 2011 में 18 दिसबंर को उनका निधन हो गया। उन्हें 1998 में दुष्यंत कुमार पुरस्कार, नोएडा से नागरिक सम्मान, माटी रत्न पुरस्कार मिल चुका है। 19 नवंबर 2011 को अदम गोंडवी को पद्म विभूषण पुरस्कार देने की तत्कालीन डीएम राम बहादुर की संस्तुति फाइलों में दबी हुई है।
◆ वर्तमान व्यवस्था के यथार्थ को स्वर देते हुए उसके खिलाफ विद्रोह की कविता लिखी। अदम की शायरी सुकई, मंगरे, झुम्मन घिसियावन से बतियाती हुई बगावत का बिगुल बजाते हुए संसद को ललकारती है। इसलिए वह कहते हैं कि 'जनता के पास एक ही चारा है बगावत'। कुल मिलाकर अदम जनता का कवि है। उन्होंने न केवल शायरी की बल्कि शायरी को जिया भी है। वह एक महान रचनाकार थे। वरिष्ठ साहित्यकार सूर्य पाल सिंह का कहना है कि अदम गोंडवी को हिंदी ग़ज़ल में दुष्यन्त कुमार की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला शायर माना जाता है। राजनीति, लोकतंत्र और व्यवस्था पर करारा प्रहार करती अदम गोंडवी की ग़ज़लें जनमानस की आवाज हैं। उसमें समाज का सच छिपा है।
◆ अदम गोंडवी की कुछ गज़लें: तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है उधर जमहूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ' गरीबी में ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है तुम्हारी मेज चाँदी की तुम्हारे ज़ाम सोने के यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है दूसरी ग़ज़ल काजू भुने पलेट में विस्की गिलास में उतरा है रामराज विधायक निवास में पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत इतना असर है खादी के उजले लिबास में आजादी का वो जश्न मनाएँ तो किस तरह जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें संसद बदल गई है यहाँ की नखास में जनता के पास एक ही चारा है। बगावत यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में' अदम गोण्डवी जी को तहे दिल से श्रद्धाजलि देते हुए शत् शत् नमन है।
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