Monday, January 14, 2019

गोण्डा- श्रीराम नाम मंच के तत्वावधान में ग्यारह दिवसीय श्रीराम कथा हुई संपन्न,

गोण्डा 14 जनवरी।(प्रदीप पाण्डेय)। भगवान राम ने जीवन पर्यंत समाज को जोड़ने का काम किया है। यदि राम के पद चिन्हों पर चलकर हम भी समाज में ऊंचा स्थान प्राप्त करना चाहते हों तो समाज को जोड़ने का काम करें। श्री राम चरित मानस का यही मूल मंत्र है। यह बात अखिल भारतीय श्री राम नाम जागरण मंच के तत्वाधान में प्रदर्शनी मैदान में आयोजित ग्यारह दिवसीय श्री राम कथा के अंतिम अंतरराष्ट्रीय कथावाचक रमेश भाई शुक्ल ने कही।

उन्होंने कहा कि गुरु वशिष्ठ और गुरु विश्वामित्र के मध्य काफी तनातनी थी। किन्तु भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ से शास्त्र और गुरु विश्वामित्र से शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त करके दोनों को आपस में मिलाने का काम किया। उन्होंने कहा कि जनकपुर और अयोध्या राज्यों के बीच भी सम्बन्ध अच्छे नहीं थे। यही कारण था कि सीता के स्वयंम्बर के लिए दुनिया भर के राजाओं को निमंत्रण गया था किंतु अयोध्या बगल में ही रहने के बावजूद खराब सम्बन्धों के कारण ही निमंत्रण पत्र नहीं आया था। इसके बावजूद भगवान राम गुरु विश्वामित्र के साथ वहां गए और शिव धनुष तोड़कर सीता के साथ विवाह करके दो राज्यों के बीच अच्छे संबंध विकसित किए। निषाद राज गुह को गले लगाकर समाज में ऊंच-नीच का भेदभाव खत्म करने का संदेश दिया।

नर-वानर के बीच भेद खत्म करने के लिए सुग्रीव, जामवंत आदि से मित्रता की। विभीषण को मित्र बनाकर मानव-दानव के बीच की खाई को खत्म किया। इतना ही नहीं, सेतु बनाकर भारत और श्री लंका के बीच की दूरी भी मिटा दी। इसलिए हमें भी हमेशा समाज को जोड़ने के लिए पुल बनाने का काम करना चाहिए।

कथाकार ने कहा कि लंका में लक्ष्मण जी को शक्ति लगने के बाद एक बार हनुमान जी को भी घमंड हो गया था। उन्होंने कहा था कि सूर्य निकलने के पहले द्रोणागिरि से संजीवनी बूंटी मैं लाऊंगा। रात के अंतिम प्रहर में जब वह पर्वत समेत अयोध्या के ऊपर से जा रहे थे, तो नंदी ग्राम में पूजा कर रहे भरत ने उन्हें दुश्मन समझ कर एक तिनके से मार दिया। इससे हनुमान जमीन पर गिर गए और पर्वत हवा में ही रुका रहा। तब हनुमान का भ्रम दूर हुआ कि यह पर्वत मैं नहीं ले जा रहा था। यह किसी की कृपा से मेरे साथ जा रहा था।

कथा वाचक ने कहा कि वैराग्य के प्रतीक लक्ष्मण 'निश्चर हीन करहुं महि' की बात करते हैं किंतु कुम्भकर्ण से लड़ने वह नहीं गए। भगवान राम ने कुम्भकर्ण को मारा क्योंकि अहंकार के प्रतीक कुम्भकर्ण को धर्म के प्रतीक राम के अलावा कोई और नहीं मार सकता। उन्होंने कहा कि भगवान राम ने वनवास काल के 14 वर्षों में धर्म रथ और विद्या रूपी नाव की सवारी करके, प्रेम पद गाकर तथा असंग (विमान) यात्रा करके राम राज्य के स्थापना की नींव रखी थी।

समापन दिवस के प्रसाद वितरण में जिलाधिकारी कैप्टन प्रभांशु श्रीवास्तव, आयोजक निर्मल शास्त्री, भाजयुमो नेता दीपक गुप्ता, गनेश कुमार श्रीवास्तव, डॉ प्रभा शंकर द्विवेदी, आशीष कुमार पांडेय, सूबेदार शुक्ला, जगदम्बा प्रसाद शुक्ला, सभाजीत तिवारी, संदीप मेहरोत्रा, राजू ओझा, ईश्वर शरण मिश्र, विनय चतुर्वेदी, प्रदीप दीक्षित, हरी कृष्ण ओझा, राज कुमार मिश्र, मनीष शुक्ला, अमित गुप्ता, ज्योतिषाचार्य पंकज, अवनि कुमार शुक्ल, शैलेन्द्र गुप्ता, संतोष सोनी, अनुपम पांडेय, शीतल सोनी, श्रीमती किसलय तिवारी आदि मौजूद रहे।

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