गोण्डा 12 जनवरी।(प्रदीप पाण्डेय) त्रेता युग में पंचवटी प्रवास के दौरान सीता द्वारा तीन गलती किए जाने के कारण साधु वेशधारी रावण द्वारा उनका अपहरण किया गया। आज कलियुग में भी यदि तीनों गलतियां दुहराएंगे तो जीवन में संकट आना तय है। यह बात अखिल भारतीय श्री राम नाम जागरण मंच के तत्वाधान में प्रदर्शनी मैदान में आयोजित श्रीराम कथा में अंतरराष्ट्रीय कथावाचक रमेश भाई शुक्ल ने कही। वह शुक्रवार को सीता हरण की कथा सुना रहे थे।
कथावाचक ने कहा कि सोने का मृग बने मारीच का वध करने के लिए सीता ने ज्ञान के प्रतीक राम को अपने से दूर कर दिया। बाद में वैराग्य के प्रतीक लक्ष्मण को भी कुटिया से बाहर भेज दिया। और अंत में स्वयं भी रावण को भिक्षा देने के लिए लक्ष्मण रेखा (मर्यादा) का उल्लंघन कर बैठीं। इसका परिणाम हुआ कि रावण उनका अपहरण करने में सफल हो गया। व्यास पीठ ने कहा कि इसी प्रकार जब भी हम अपने जीवन से ज्ञान (उचित-अनुचित का), वैराग्य और मर्यादा को दूर कर देते हैं तो हमें मुसीबत में आने से कोई बचा नहीं सकता। उन्होंने कहा कि विधवा होने के बावजूद सूर्पणखा सोलहों श्रृंगार करके राम की कुटिया में प्रणय निवेदन करने पहुँची थी। इसलिए उसका अहित होना ही था क्योंकि शास्त्रों में विधवा स्त्री, कुआंरी कन्या और साधु-सन्यासी का अतिशय श्रृंगार वर्जित है। यदि ये तीनों इसके प्रतिकूल आचरण करेंगे, तो समस्या पैदा होगी। सूर्पणखा का नाक-कान काटकर लक्ष्मण ने वापस कर दिया। यह इस बात का संकेत है कि वासना को हमेशा वैराग्य ही रास्ते पर लाता है।
व्यासपीठ ने कहा कि शास्त्रों में सती नर-नारियों की तीन श्रेणियां बताई गई हैं। पहली जो अपने जीवन साथी के अलावा स्वप्न में भी दूसरे के बारे में न सोंचे। दूसरी श्रेणी में वह लोग आते हैं जो दूसरे स्त्री-पुरुष को उसकी आयु के अनुसार माता-पिता, भाई-बहन अथवा पुत्र-पुत्री के समान आचरण करें। तीसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं जो भय अथवा मौका न मिलने के कारण पर स्त्री-पुरुष के संसर्ग से बच जाते हैं। यद्यपि यह सबसे निम्न श्रेणी है, फिर भी इन तीनों श्रेणियों के लोगों को पति-पत्नी व्रता कहा गया है। माता अनुसुइया ने सीता का सत्कार करने के बाद संदेश दिया था कि छल-कपट छोड़कर जो अपने पति-पत्नी व्रत धर्म का पालन करेगा, उसे परम गति की प्राप्ति होगी।
श्रीशुक्ल ने कहा कि शबरी के पास पांच चीजें होने के कारण भगवान राम उनकी कुटिया को गए थे। एक झाड़ू था, जो स्वच्छता का प्रतीक है। एक तुलसी की माला थी, जिससे राम नाम का जाप होता था। दो फूटे हुए मिट्टी के घड़े थे, जिनसे जल का रिसाव होता रहता था। फलों की एक टोकरी थी तथा गुरु मतंग के वचनों पर विश्वास था कि एक दिन भगवान राम तेरी कुटिया पर अवश्य आएँगे। इसी प्रकार यदि हम अपना तन-मन और घर स्वच्छ रखें, तुलसी की माला से राम नाम का जाप करें, दोनों नयनों को गीला करके प्रभु को याद करें, अपने सद्कर्मों के फलों की टोकरी उनके चरणों में अर्पित करें और गुरु पर अटूट विश्वास करें तो प्रभु की कृपा की प्राप्ति अवश्य होगी। इस मौके पर राम कथा के आयोजक निर्मल शास्त्री, गौरव कृष्ण शास्त्री, हरिओम।शरण पांडेय, अंकुर शास्त्री, दिनेशानंद जी महाराज, शारदा कांत पांडेय, आशीष पांडेय, ईश्वर शरण मिश्र, सभाजीत तिवारी, शिवकांत मिश्र विद्रोही, राजू ओझा, डॉ प्रभा शंकर द्विवेदी, राज कुमार मिश्र, सूबेदार शुक्ल, अवधेश शुक्ल आदि उपस्थित रहे।
■ पत्रकार, कथाकार और कलाकार पर देश की बड़ी जिम्मेदारी : रमेश भाई शुक्ल
इस देश के पत्रकार, कथाकार और कलाकार अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी से कर दें, तो देश का कल्याण हो सकता है। सम्पूर्ण भारत में एक बार फिर सत्यम, शिवम और सुंदरम की स्थापना की जा सकती है। यह बात अंतरराष्ट्रीय कथावाचक रमेश भाई शुक्ल ने यहां चल रही 11 दिवसीय राम कथा में कही।
उन्होंने कहा कि राष्ट्र निर्माण में इन तीनों की बहुत बड़ी भूमिका है। पत्रकार यदि पूरी ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने लगें तो समाज में सत्य की स्थापना हो सकती है अर्थात सही बातें सबके सामने लाई जा सकती हैं। इससे गलत कार्य करने वाले भयभीत होंगे। उनके कंधों पर लोकतंत्र के तीन स्तम्भों को उनके कर्तव्य पथ से विचलित न होने देने की जिम्मेदारी है किंतु कदाचित वर्तमान में यह कार्य पूरी जिम्मेदारी के साथ नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि शिव कल्याण का प्रतीक है। यदि हम कथाकार अपनी जिम्मेदारियों का सम्यक निर्वहन करते हुए समाज को जोड़ने वाली कथा कहें और लोगों को सद्कार्यों व पुरुषार्थ के लिए प्रेरित करें तो समाज का कल्याण अवश्य होगा। किंतु शुक्ल ने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि साधुवेश में छिपे हुए रावणों के कारणों सच्चे कथाकार भी सन्दिग्ध नजरों से देखे जाते हैं। कई कथाकारों को तो बुढ़ौती में श्री कृष्ण जन्म स्थान देखना पड़ा।
श्रीशुक्ल ने कहा कि समाज को स्वस्थ मनोरंजन कराने की जिम्मेदारी कलाकारों की है किंतु आज कला के नाम पर जिस प्रकार से नग्नता, अश्लीलता परोसी जा रही है, वह समाज को गर्त में लेकर जा रहा है। युवा पीढ़ी पथ भ्रष्ट हो रही है। संस्कार खत्म हो रहे हैं। यह समाज के लिए घातक है।
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