■ पौष पूर्णिमा सरयू संगम स्नान 21 जनवरी सोमवार को,
गोण्डा।(राजन कुशवाहा)। परसपुर क्षेत्र के सूकरखेत पसका स्थित सरयू संगम त्रिमुहानी तट पर स्नान- दान व मेले का आयोजन 20 जनवरी से शुरू हो जाएगा। कुटियों में जप तप त्याग पूजा पाठ कर रहे कल्पवासियों सम्पूर्ण संगम क्षेत्र अब लघु प्रयाग सा नजर आने लगा है। कल्पवासियों से गुलजार मेला परिसर व संगम स्थल पर प्रशासन ने चौकसी बढ़ा दी है। 21 जनवरी सोमवार को आयोजित इस मेले में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु सरयू संगम स्नान ध्यान और वाराह भगवान की परिक्रमा प्रसाद चढ़ावा करते हैं।
श्रीरामचरित मानस के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने गुरु नरहरिदास जी से इसी भूमि पसका सूकरखेत में दीक्षा ली। गुरु नर हरि आश्रम में हस्तलिखित रामायण के पन्ने इस स्थली की ऐतिहासिकता को सँजोये हैं। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने वाराह का रूप धारण कर पृथ्वी को हिरण्याक्ष के चँगुल से मुक्त कराया। इसलिए इस गुरु नर हरि दास तपोस्थली को सूकरखेत या वाराह क्षेत्र कहा जाता है। पवित्र सरयू नदी के संगम तट त्रिमुहानी तट पर काफी संख्या में नागा, साधु-संतों तथा गृहस्थों ने फूस की कुटिया बनाकर कल्पवास में अपना नाता परब्रह्म परमात्मा से जोड़ तपस्या में लीन है।
कल्पवासियों की कुटियों से सूकरखेत का सम्पूर्ण सरयू संगम क्षेत्र का लघु प्रयाग बना हुआ है। इस सरयू संगम स्थल को पूर्वांचल का प्रयाग भी लोग कहने लगे हैं। यहाँ पसका सूकरखेत के ग्राम राजापुर को रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म स्थान माना जाता है। यहां तुलसीदास जी के गुरु नरहरिदास जी का आश्रम एवं प्राचीनतम विशाल वाराह भगवान मन्दिर है। रामचरित मानस के बालकांड में इस स्थान का उल्लेख तुलसीदास जी ने किया है। इस स्थान पर सरयू घाघरा नामक दो पवित्र नदियों का संगम है।
इसलिए इस स्थान पर प्रतिवर्ष पौष पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है। जिसे पसका संगम मेला के नाम से जाना जाता है। परंतु यह बीते वर्षों में नदी के तट पर बांध बन जाने से संगम का अस्तित्व कम हो गया। इस पौराणिक संगम स्थली का उल्लेख स्कंद पुराण में उल्लेख है कि- दशकोटि सहस्त्राणि, दश कोटि शतानि च तीर्थानि सरयू नद्या, घर्घरोदक संगमे। भावार्थ यह है कि सरयू व घाघरा संगम तट पर हजारों तीर्थ विद्यमान हैं। श्रीरामचरित मानस के बालकांड में चौपाई त्रिविध ताप नाशक त्रिमुहानी का व्याख्यान पसका सूकरखेत से है।
इस पौराणिक स्थल पर लाखों श्रद्धालु पौष पूर्णिमा को स्नान-दान पुण्य करते हैं। इसी सूकरखेत में भगवान विष्णु ने वाराह का रूप धारण कर हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए इस स्थल को सूकरखेत के नाम से जाना जाता है। यहां भगवान सूकर की प्रतिमा स्थापित भगवान वाराह का मन्दिर आकर्षण का केंद्र है। यहाँ तीन दशक पूर्व 1985 में भगवान वाराह की वेशकीमती मूर्ति चोरी हो गई। जिसे बाद में पुलिस ने खंडित रूप में बरामद किया। यह मूर्ति आज मालखाने में रखी हुई है। बीते 28 दिसम्बर 2014 को पसका स्टेट एवं सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कर वाराह भगवान प्रतिमा पुनर्स्थापित कराया।
Jai ho
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